Introduction
नमस्कार, देखें अभी IVF की बात हो रही है। IVF का पहला बच्चा 1978 में ब्रिटेन में पैदा हुआ था। तो आजसे लगभग 44-45 वर्ष हो गए हैं और इस दौरान लगभग 10 मिलियन से अधिक बच्चे पैदा हो चुके हैं और IVF एक प्रसिद्ध उपचार बन रहा है। इसलिए मेरा मानना है कि एक महत्वपूर्ण खोज थी, जो वित्रीफिकेशन या फ्रीजिंग था। इसलिए आज मैं आपको फ्रीजिंग या एम्ब्रियो फ्रीजिंग के बारे में, इसके बारे में क्या होता है, फ्रीजिंग के बारे में और वित्रीफिकेशन के बारे में बताना चाहती थी। मैं डॉ. वैशाली चौधरी हूं, सह्याद्री हॉस्पिटल पुणे से, और आज हम फ्रीजिंग के बारे में चर्चा करेंगे।
Procedure
तो देखो, जब हम पहले IVF करते थे, तो उस समय हम इंजेक्शन देते थे, हार्मोन्स के बूस्ट करने के लिए अंडानुवृत्ति बढ़ाने के लिए, फॉलिकल्स बढ़ते थे, फिर हम उन फॉलिकल्स को नीडल्स के द्वारा अनेस्थेजिया के अंदर से निकालते थे, और इन एग्स में से बच्चे बनाते थे, और बच्चों को बनाने के बाद हम फ्रेश ट्रांसफर करते थे। कभी हम इसे तीसरे दिन को करते थे, कभी पांचवें दिन को भी कभी-कभी करते थे। लेकिन एक बात को समझना चाहिए कि हमें जब हॉर्मोन्स की बूस्ट मिलती है, तो रक्त में हॉर्मोन्स की मात्रा बहुत बढ़ जाती है।
Estradiol Hormone
अब यह हॉर्मोन कौन सा है? इस्ट्रेडायल, इस्ट्रेडायल हॉर्मोन होता है। तो जब देखा गया कि इसका स्तर बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है और उसी स्थिति में हम एम्ब्रियो ट्रांसफर करते थे, तो गर्भावस्था हो जाती थी, लेकिन गर्भावस्था का हॉर्मोन है जिसे बीटा एचसीजी भी कहा जाता है, जो गर्भावस्था के साथ बढ़ता था और यह बीटा एचसीजी हॉर्मोन और बड़ा हुआ एस्ट्रेडायल। इन दोनों का एक अजीब सा प्रतिक्रिया शरीर में हो जाता था।
Ovarian hyperstimulation
और इसका परिणाम यह था कि शरीर के अंदर पानी का प्रमाण बहुत ज़्यादा बढ़ जाता था। यानी कोशिकाओं के अंदर का पानी बाहर निकल जाता था और वह शरीर के खलीजग में, फिर फेफड़ों में, पेट में, आप जानते हैं, जाता था। और जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती थी। पेट में बहुत असुविधा होती थी और यह पानी, अर्थात की 10 लीटर, 4 लीटर तक इतना बढ़ जाता था शरीर के अंदर का जिससे रोगी की स्थिति गंभीर हो जाती थी, कभी-कभी उन्हें आईसीयू में ले जाया जाता था और जीवन संबंधी भी खतरा हो जाता था। इसे “ओवेरियन हायपरस्टिमुलेशन” भी कहा जाता था।
Slow freezing
अब रिसर्च हुई वित्रीफिकेशन या फ्रीजिंग की पहले तो फ्रीजिंग था -196 डिग्रीज़ पर अपने आप को एम्ब्रियोज़ फ्रीज करने। लेकिन जो बॉडी टेम्परेचर होती है 37 डिग्रीज या हमारा काम करने का टेम्परेचर है +37 डिग्रीज़। वहां से जाना है कि अपने को -196 डिग्रीज़ ले जाना है। तो यह स्लो फ्रीजिंग था। धीरे-धीरे धीरे-धीरे टेम्परेचर कम किए जाते थे। अब इसमें होता क्या था कि जो कोशिकाओं के अंदर पानी होता है, उसे तो आपको पता है कि कोशिकाओं के अंदर बहुत सारा पानी होता है। वैसे ही एग्स के अंदर एम्ब्रियो के अंदर पानी होता है। तो जैसे ही फ्रीजिंग 0 डिग्रीज़ के नीचे जाता था, तो यह पानी बन जाता था बर्फ बन जाता है इस पानी का और यह फ्रीज हो जाते थे। लेकिन जब हम उनको थों करते थे और वापस टेम्परेचर 37 डिग्रीज पे लाते थे तो यह जो बर्फ था यह ब्रेक हो जाता था। इसे हम icicles बोलते थे। तो कोशिकाओं के अंदर यह डिस्ट्रक्शन कर जाता था सेल्स के अन्य अंगों जो अंग हैं उनको डिस्ट्राय कर जाता था। तो इसलिए रिजल्ट्स स्लो फ्रीजिंग के हमें इतने अच्छे नहीं मिल रहे थे।
Fast freezing
फिर आई खोज फ्लैश फ्रीजिंग या बहुत तेज फ्रीजिंग। इसलिए विट्रिफिकेशन का मतलब है कि बर्फ बनने की अनुमति ही नहीं देना है। कोशिकाओं के अंदर जो जल है, उसे बर्फ बनने से पहले पूरा विट्रिफाई कर दें। तो यह कुछ सेकंड्स के भीतर होने वाली रैपिड फ्रीजिंग है, जिसमें कुछ सेकंड्स के भीतर ही इस एंब्रियो को 37 डिग्री से -196 डिग्री तक तेजी से फ्रीज किया जाता है। तो बर्फ बनती ही नहीं थी और इस सुरक्षा के लिए हम क्रायोप्रोटेक्शन्स जो कुछ रसायन होते हैं, उन्हें एंब्रियो को कोट कर जाते हैं, वे क्रायोप्रोटेक्टेंट्स, जिससे एंब्रियो सुरक्षित रहता है। तो अब यह सुरक्षित रूप से फ्रीजिंग होने लगा है। क्योंकि जब हम ऐसे एंब्रियो को वापस थॉ करने लगे और 37 डिग्री पर लाने लगे तो ये एंब्रियो बिल्कुल सुरक्षित रहने लगे। इनमें कोई हानि नहीं होती थी जैसे हमने फ्रीज किया उसी हालत में हमें ये एंब्रियो मिलने लगे। हाँ, ये जरूरी है कि एकदम अच्छी गुणवत्ता के एंब्रियो से ये फ्रीजिंग और थोंईग सहन करते हैं। अगर तुम खराब गुणवत्ता के एंब्रियो को फ्रीज करोगे तो उनका थोंईग के बाद इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं होगा और एंब्रियो इतनी अच्छी हालत में नहीं मिलेंगे।
Success rate
तो जब से विट्रिफिकेशन आया है, तो हमने इस आईवीएफ को दो हिस्सों में बांटना लगा पहले हिस्सों में हम सिर्फ एंब्रियो बनाने लगे उनको फ्रीज करने लगे और दूसरे जब आपके हॉर्मोन्स की मात्रा सामान्य हो जाए, पीरियड आने के बाद तब दूसरे महीने में हम ट्रांसफर करने लगे। और इससे हमारे परिणामों में लगभग 20-25 प्रतिशत का बदलाव आया जो हमें 30-40 प्रतिशत के परिणाम मिलते थे, अब हमें 60-65 प्रतिशत के परिणाम मिलने लगे और इसलिए आईबीएफ करने में हमें ज्यादा आत्मविश्वास होने लगा।
For doubts
तो यह थी आज की कहानी विट्रिफिकेशन के बारे में, ऐसी कई कहानियां हैं, बाकी अगले वीडियो में। धन्यवाद बहुत बहुत, आपको कोई संदेह हो तो हमें पूछिए, हमारे उल्लिखित लिंक पर जो नंबर है, मैं या मेरी टीम, हम कोई भी आपके संदेहों का जवाब देंगे।